भारत को आजाद हुए 64साल हो चुके हैं! और इन सालों में ज्यादातर समय तक एक ही वंश ने शासन किया है! वो वंश है भारत के पहले प्रधानमंत्री का! लेकिन आज देश का एक बहुत बड़ा तबका इस खानदान पर सवाल खड़े कर चूका है! आइये जानते हैं इसी वंश से जुडी कुछ संदेहास्पद बातों के बारे में!
कहानी शुरू होती है जवाहर लाल के पड़-दादाओं से! इनमे दो नाम विशेष रूप से लेना चाहूँगा!
एक तो था राज कौल जिसके बाप
का नाम था गंगू! गंगू ने सिखों के गुरु गोविन्द सिंह के बेटों को औरंगजेब के हवाले करवा दिया था गद्दारी करके ! जिसके कारन हिन्दू और सिख गंगू को ढून्ढ रहे थे! अपनी जान बचाने के लिए गंगू कश्मीर से भागकर डेल्ही आ गया जिसके बारे में औरंगजेब के वंशज, फरुख्शियर को पता चल गया! उसने गंगू को पकड़कर इस्लाम कबूल करने को कहा! बदले में उसे नहर के पार कुछ जमीन देदी!
दूसरा नाम है गियासुदीन गाजी जो राज कोल की औलाद था! यही था मोतीलाल नेहरु का बाप! अब ये जो गियासुदीन था वो 1857 कि क्रांति से पहले मुग़ल साम्राज्य के समय में एक शहर का कोतवाल हुआ करता था! और 1857 कि क्रांति के बाद, जब अंग्रेजों का भारत पर अच्छे सेकब्ज़ा हो गया तो अंग्रेजों ने मुगलों का क़त्ल-ए-आम शुरू कर दिया!
ब्रिटिशर्स ने मुगलों का कोई भी दावेदार न रह जाये, इसके लिए बहुत खोज करके सभी मुगलों और उनके उत्तराधिकारियों का सफाया किया! दूसरी तरफ अंग्रेजों ने हिन्दुओं पर निशाना नहीं किया हालाँकि अगर किसी हिन्दू के तार मुगलों से जुड़े हुए थे तो उन पर भी गाज गिरी! अब इस बात से डरकर कुछ मुसलमानों ने हिन्दू नाम अपना लिए जिससे उन्हें छिपने में आसानी हो सके! अब इस गियासुदीन ने भी हिन्दू नाम अपना लिया! डर और चालाकी इस खानदान कि बुनियाद से ही इनका गुण रहा है! इसने अपना नाम रखा गंगाधर और नहर के साथ रहने के कारन अपना उपनाम इसने अपनाया वो था नेहरु!
(उस समय वो लाल-किले के नज़दीक एक नहर के किनारे पर रहा करता था!) और शायद यही कारन है कि इस उपनाम का कोई भी व्यक्ति नहीं मिलेगा आपको पूरी दुनिया में!
एम् के सिंह कि पुस्तक “Encyclopedia of Indian War of Independence” (ISBN:81-261-3745-9) के 13वे संस्करण में लेखक ने इसका विस्तार से उल्लेख किया है , लेकिन भारत सरकार हमेशा से इस तथ्य को छिपती रही है !
एक तो था राज कौल जिसके बाप
का नाम था गंगू! गंगू ने सिखों के गुरु गोविन्द सिंह के बेटों को औरंगजेब के हवाले करवा दिया था गद्दारी करके ! जिसके कारन हिन्दू और सिख गंगू को ढून्ढ रहे थे! अपनी जान बचाने के लिए गंगू कश्मीर से भागकर डेल्ही आ गया जिसके बारे में औरंगजेब के वंशज, फरुख्शियर को पता चल गया! उसने गंगू को पकड़कर इस्लाम कबूल करने को कहा! बदले में उसे नहर के पार कुछ जमीन देदी!
दूसरा नाम है गियासुदीन गाजी जो राज कोल की औलाद था! यही था मोतीलाल नेहरु का बाप! अब ये जो गियासुदीन था वो 1857 कि क्रांति से पहले मुग़ल साम्राज्य के समय में एक शहर का कोतवाल हुआ करता था! और 1857 कि क्रांति के बाद, जब अंग्रेजों का भारत पर अच्छे सेकब्ज़ा हो गया तो अंग्रेजों ने मुगलों का क़त्ल-ए-आम शुरू कर दिया!
ब्रिटिशर्स ने मुगलों का कोई भी दावेदार न रह जाये, इसके लिए बहुत खोज करके सभी मुगलों और उनके उत्तराधिकारियों का सफाया किया! दूसरी तरफ अंग्रेजों ने हिन्दुओं पर निशाना नहीं किया हालाँकि अगर किसी हिन्दू के तार मुगलों से जुड़े हुए थे तो उन पर भी गाज गिरी! अब इस बात से डरकर कुछ मुसलमानों ने हिन्दू नाम अपना लिए जिससे उन्हें छिपने में आसानी हो सके! अब इस गियासुदीन ने भी हिन्दू नाम अपना लिया! डर और चालाकी इस खानदान कि बुनियाद से ही इनका गुण रहा है! इसने अपना नाम रखा गंगाधर और नहर के साथ रहने के कारन अपना उपनाम इसने अपनाया वो था नेहरु!
(उस समय वो लाल-किले के नज़दीक एक नहर के किनारे पर रहा करता था!) और शायद यही कारन है कि इस उपनाम का कोई भी व्यक्ति नहीं मिलेगा आपको पूरी दुनिया में!
एम् के सिंह कि पुस्तक “Encyclopedia of Indian War of Independence” (ISBN:81-261-3745-9) के 13वे संस्करण में लेखक ने इसका विस्तार से उल्लेख किया है , लेकिन भारत सरकार हमेशा से इस तथ्य को छिपती रही है !
उस समय सिटी कोतवाल का दर्ज़ा आज के पुलिस कमिश्नर कि तरह एक बहुत बड़ा दर्जा हुआ करता था और ये बात जग-ज़ाहिर है कि उस समय मुग़ल साम्राज्य में कोई भी बड़ा पद हिन्दुओं को नहीं दिया जाता था! विदेशी मूल के मुस्लिम लोगों को ही ऐसे पद दिए जाते थे!
जवाहर लाल नेहरु कि दूसरी बहिन कृष्ण ने भी ये बात अपने संस्मरण में कही है कि जब बहादुर शाह जफ़र का राज था तब उनका दादा सिटी कोतवाल हुआ करता था!
जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में कहा गया है कि उसने अपने दादा की एक तस्वीर देखि है जिसमे उसके दादा ने एक मुगल ठाकुर की तरह कपडे पहने हैं और चित्र में दिखाई देता है कि वह लंबे समय से और बहुत मोटी दाढ़ी रख रहा था, एक मुस्लिम टोपी पहने हुए था और उसके हाथ में दो तलवारें लिए हुए था!
उसने ये भी लिखा कि उसके दादा और परिवार को अंग्रेजों ने हिरासत में ले लिए था , जबकि असली कारन का उल्लेख तक नहीं किया! जोकि ये था कि वो लोग मुगलों से जुड़े हुए थे !
बल्कि बहाना ये बनाया कि क्यूंकि वो लोग कश्मीरी पंडित थे, इसलिए उनके साथ ऐसा किया गया!
19 वीं सदी के उर्दू साहित्य, विशेष रूप से ख्वाजा हसन निज़ामी का काम , इस बात को पूरी तरह साबित करता है कि कैसे उस समय मुगलों और मुसलमानों को परेशानी उठानी पड़ी थी! और हर सम्भावना में नेहरु का दादा और उसका परिवार भी उन दिनों उनके साथ था!
जवाहरलाल नेहरू ने अपनी आत्मकथा में कहा गया है कि उसने अपने दादा की एक तस्वीर देखि है जिसमे उसके दादा ने एक मुगल ठाकुर की तरह कपडे पहने हैं और चित्र में दिखाई देता है कि वह लंबे समय से और बहुत मोटी दाढ़ी रख रहा था, एक मुस्लिम टोपी पहने हुए था और उसके हाथ में दो तलवारें लिए हुए था!
उसने ये भी लिखा कि उसके दादा और परिवार को अंग्रेजों ने हिरासत में ले लिए था , जबकि असली कारन का उल्लेख तक नहीं किया! जोकि ये था कि वो लोग मुगलों से जुड़े हुए थे !
बल्कि बहाना ये बनाया कि क्यूंकि वो लोग कश्मीरी पंडित थे, इसलिए उनके साथ ऐसा किया गया!
19 वीं सदी के उर्दू साहित्य, विशेष रूप से ख्वाजा हसन निज़ामी का काम , इस बात को पूरी तरह साबित करता है कि कैसे उस समय मुगलों और मुसलमानों को परेशानी उठानी पड़ी थी! और हर सम्भावना में नेहरु का दादा और उसका परिवार भी उन दिनों उनके साथ था!
जवाहर लाल नेहरु एक ऐसा व्यक्ति था जिसे पूरा भारत इज्ज़त कि नज़र से देखता है! वह निस्संदेह एक बहुत ही ध्वनि राजनीतिज्ञ और एक प्रतिभाशाली इंसान था! लेकिन कमाल कि बात देखिये कि उसके जनम स्थान पर भारत सरकार ने कोई भी स्मारक नहीं बनवाया है आजतक भी! बनवाएं भी किस मुह से! बे-इज्ज़ती जो होगी!इनका कच्चा चिटठा बहार जो आ जायेगा!
कारन में बतला देता हूँ!
जवाहर लाल का जनम हुआ था- 77 , मीरगंज, अलाहाबाद में! एक वेश्यालय में!
अलाहाबाद में बहुत लम्बे समय तक वो इलाका वेश्यावृति के लिए प्रसिद्द है! और ये अभी हाल ही में वेश्यालय नहीं बना है बल्कि जवाहर लाल के जनम से बहुत पहले तक भी वहां यही काम होता था! हा हा
कारन में बतला देता हूँ!
जवाहर लाल का जनम हुआ था- 77 , मीरगंज, अलाहाबाद में! एक वेश्यालय में!
अलाहाबाद में बहुत लम्बे समय तक वो इलाका वेश्यावृति के लिए प्रसिद्द है! और ये अभी हाल ही में वेश्यालय नहीं बना है बल्कि जवाहर लाल के जनम से बहुत पहले तक भी वहां यही काम होता था! हा हा
उसी घर का कुछ हिस्सा जवाहर लाल नेहरु के बाप मोतीलाल ने लाली जान नाम किएक वेश्या को बेच दिया था जिसका नाम बाद में इमाम-बाड़ा पड़ा!
यदि किसी को इस बात में कोई भी संदेह है तो आप उस जगह की सैर कर आयें! कई भरोसेमंद स्रोतों और encyclopedia.com और विकिपीडिया भी इस बात कि पुष्टि करता है! बाद में मोतीलाल अपने परिवार के साथ आनंद भवन में रहने आ गए! अब ध्यान रहे कि आनंद भवन नेहरु परिवार का पैतृक घर तो है लेकिन जवाहर लाल नेहरु का जनम स्थान नहीं!
यदि किसी को इस बात में कोई भी संदेह है तो आप उस जगह की सैर कर आयें! कई भरोसेमंद स्रोतों और encyclopedia.com और विकिपीडिया भी इस बात कि पुष्टि करता है! बाद में मोतीलाल अपने परिवार के साथ आनंद भवन में रहने आ गए! अब ध्यान रहे कि आनंद भवन नेहरु परिवार का पैतृक घर तो है लेकिन जवाहर लाल नेहरु का जनम स्थान नहीं!
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